राहुल-जननि 1-20 का पाठ
लेख्य-मंजूषा की मासिक पद्य गोष्ठी में सदस्यों ने अपनी रचना के पाठ के स्थान पर वरिष्ठ साहित्यकारों की रचना का पाठ किया।
लेख्य-मंजूषा (साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती पंजीकृत संस्था) के उपर्युक्त पाँच समूहों के प्रतिभागियों ने धरोहर साहित्यकारों की रचनाओं का पाठ किया।
रविवार 12 जुलाई 2020 लेख्य-मंजूषा की मासिक पद्य गोष्ठी में इस बार सदस्यों ने स्व-सृजित रचना -पाठ के स्थान पर वरिष्ठ साहित्यकारों की रचना का पाठ किया और सभी समूह के नेतृत्वकर्ता से साहित्य से सम्बंधित सवाल भी पूछे गए..
1. साहित्य का क्या अर्थ है ? हिन्दी साहित्य का आरम्भ किस शताब्दी से माना जाता है?
अर्थात समाज का हित, 8वीं शताब्दी से
2. हिन्दी के प्रथम कवि कौन माने जाते हैं? चम्पू क्या है ?
3. क्या हर साहित्यिक कृति समाज को नई दिशा की ओर ले जाती है? साहित्यकार क्या हर कृति को लिखने से पहले यह सोच लेता है?
4.आधुनिक साहित्य में बढ़ती अश्लीलता के लिए कौन जिम्मेदार है?
5.क्या कारण है अपवाद छोड़ दें तो प्रायः लेखक अपना लेखन-कार्य काव्य की ही किसी विधा से करता है?
मंचीय अतिथि
राश दादा राश'जीना चाहता हूँ मरने के बाद', फ़क़त अंदाज़ है जीने का, मुहब्बत में ज़हर पीने का,
वो अपनी खामियों को ढांकता है
गिरेबां में हमारी झांकता है
जिसे करना नहीं होता है कुछ भी
वही लफ़्ज़ों की गाड़ी हांकता है कवि घनश्याम
सतविन्द्र कुमार राणा (मुल्यांकनकर्त्ता)रविन्द्र सिंह यादव
कविवर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की एक लघु कविता-
प्यार : एक छाता
विपदाएँ आते ही,
खुलकर तन जाता है
हटते ही
चुपचाप सिमट ढीला होता है;
वर्षा से बचकर
कोने में कहीं टिका दो,
प्यार एक छाता है
आश्रय देता है गीला होता है।
-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
वाचन- रवीन्द्र सिंह यादव / नई दिल्ली
साहित्य 'सीपियाँ' (36.3/60/द्वितीय)(मुल्यांकनकर्त्ता)
विषय : किसान
राजेन्द्र पुरोहित, जोधपुर 👈 नेतृत्व
किसानमैथिलीशरण गुप्त
हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है
हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ
उर्मिला वर्मा, कैलिफोर्निया
किसान
केदारनाथ अग्रवालइनका एस्थेटिक्स खेतों की धूल में गूंथ कर बना है।
हम न रहेगें
तब भी तो ये खेत रहेगें,
इन खेतों पर धान लहराते ये शेष रहेगें।
कमला अग्रवाल, गुडगाँव
किसान
सत्यनारायण लालनहीं हुआ है अभी सवेरा
पूरब की लाली पहचान
चिड़ियों के जगने से पहले
खाट छोड़, उठ गया किसान
साहित्य 'वीथिका' (36/60/तृतीय)(मुल्यांकनकर्त्ता)
प्रसंग/विषय : पावस/सावन
सुषमा खरे, जबलपुर
"एक बूँद"ज्यों निकलकर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर फिर यही जी में लगी
हाय क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।
_अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔंध
पूनम (कतरियार ), पटना👈 नेतृत्व
'सावन'
झम-झम झम झम मेघ बरसतें हैं सावन के
छम छम छम गिरती बूँदें तरूओं से छन के
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के।
__सुमित्रानंदन पंत
साहित्य 'सुधा'(34/60/चतुर्थ)(मुल्यांकनकर्त्ता)
वीररस
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर
संगीता गोविल, पटना
शीर्षक - कलम या कि तलवार
दो में से क्या तुम्हें चाहिए, कलम या कि तलवार,
मन में ऊँचे भाव कि तन में, शक्ति अजेय अपार।
अभिलाषा कुमारी 👈 नेतृत्व
हूँकार
जेठ हो कि हो पूस
हमारे कृषकों को आराम नहीं
छूटा कभी संग बैलों का
ऐसा कोई याम नहीं।
भावना कुकरेती, हरिद्वार
(रश्मिर थि, तृतीय सर्ग से)
वर्षों तक वन में घूम-घूम
बाधा बिघ्नों को चूम-चूम
स ह धूप घाम पानी पत्थर
पांडव आये कुछ और निखर।
साहित्य 'मंजरी'(40.2/60/प्रथम) -(मुल्यांकनकर्त्ता)
प्रसंग- आशाओं के दीपक
रामधारी सिंह "दिनकर"
रचना - "आशा का दीपक"
पाठ कर्ता - प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।।
अमृता सिन्हा, पटना👈 नेतृत्व
हरिवंशराय बच्चन
"है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?"
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था।
रवि श्रीवास्तव, पटना
गोपाल सिंह नेपाली"यह दीया बुझे नहीं"
घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है ।
डॉ. पूनम देवा, पटना
गोपालदास "नीरज""अंधियार ढल कर ही रहेगा"
आँधियाँ चाहें उठाओ,
बिजलियां चाहें गिराओ,
जल गया है दीप तो
अंधियार ढल कर ही रहेगा।
साहित्यिक 'स्पर्श'(30/60)-(मुल्यांकनकर्त्ता)
प्रयाण गीत
राजकांता राज, पटना
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती -
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती -
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।
नूतन सिन्हा, पटना
झाँसी की रानीसुभद्रा कुमारी चौहान
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
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लेख्य-मंजूषा की मासिक पद्य गोष्ठी में सदस्यों ने अपनी रचना के पाठ के स्थान पर वरिष्ठ साहित्यकारों की रचना का पाठ किया।
आज के कार्यक्रम में चार-चार सदस्यों को पाँच अलग-अलग दल में बाँट दिया गया था। हर दल का अपना विशिष्ठ नाम और हर दल का एक नेतृत्वकर्ता था। पहला दल ‘साहित्य सीपियाँ’ के नेतृत्वकर्ता राजस्थान के राजेन्द्र पुरोहित थे। दूसरा दल ‘साहित्य वीथिका’ की नेतृत्वकर्ता पूनम (कतरियार) थी। तीसरा दल ‘साहित्य सुधा’ की नेतृत्वकर्ता अभिलाषा कुमारी थी। चौथा दल ‘साहित्य मंजरी’ की नेतृत्वकर्ता अमृता सिन्हा थी। पाँचवा व अंतिम दल ‘साहित्य स्पर्श’ की नेतृत्वकर्ता ज्योति स्पर्श थी।
कार्यक्रम की मुख्य विशेषता यह रही हर दल के नेतृत्वकर्ता से साहित्य से सम्बन्धित सवाल भी पूछे गये। सावलों के जवाब और काव्य पाठ के ढंग पर “साहित्य मंजरी" दल प्रथम स्थान पर रही। इस दल की नेतृत्वकर्ता पटना की अमृता सिन्हा जी थी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पटना के वरिष्ठ कवी घनश्याम जी ने कहा कि कोरोना के बिगड़े माहौल में साहित्य ही वह चीज़ है जिससे मनुष्यों को मानसिक संतुष्टि मिल सकती है। लेख्य-मंजूषा ने ऑनलाइन गोष्ठियों की शुरुआत कर के इस आपदा को साहित्यकारों के लिए अवसर में बदल दिया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने तमाम उन वरिष्ठ साहित्यकारों के जीवन के बारे में बताया जिनकी आज रचना का पाठ हुआ था।
कार्यक्रम में दुसरे मुख्य अतिथि डॉ। रविन्द्र सिंह यादव ने कोरोना काल में बरती जाने वाली सावधानियों पर अपने विचार उत्पन्न किये इसके साथ ही उन्होंने कहा कि साहित्य जीवन के लिए अमृत है।
ऑनलाइन कार्यक्रम का मंच संचालन अमेरिका से संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने किया और उनके सहयोगी की भूमिका में उप-सचिव संजय सिंह रहें।
धन्यवाद ज्ञापन संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष रंजना सिंह ने किया।
काव्य गोष्ठी के इस अंदाज ने धरोहर कवियों की रचनाओं से चमत्कृत हो गयी। इतने सुंदर परिकल्पना हेतु हार्दिक आभार। 🙏
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