वर्णों का जादू

वर्णों का जादू

Friday, December 4, 2020

लेख्य-मंजूषा का चतुर्थ वार्षिकोत्सव व हाइकु दिवस

शुक्रवार 4 दिसम्बर 2020 लेख्य-मंजूषा का चतुर्थ वार्षिकोत्सव व सोलहवें हाइकु दिवस के अवसर पर
सफल साहित्योत्सव हुआ



*ऑनलाइन हाइकु दिवस गोष्ठी*
"हाइकु गम्भीर कविता है और इसे गम्भीरता से ही लिया जाना चाहिए..."
शुक्रवार 4 दिसम्बर 2020* सोलहवें हाइकु दिवस* के अवसर पर वर्चुअल गोष्ठी *(गूगल मिट)* में अतिथि डॉ. जगदीश व्योम जी ने कहा। उनके कथनानुसार प्रो० सत्यभूषण वर्मा जपानी हाइकुओं का सीधे हिन्दी में अनुवाद किया..।
भारत की सुबह दस बजे, कैलिफोर्निया में 03 दिसम्बर 2020 की रात साढ़े आठ शिकागो की रात साढ़े दस तो बॉस्टन में रात के साढ़े ग्यारह बजे से होने वाली गोष्ठी में अतिथियों के स्वागत के बाद लेख्य मंजूषा की हाइकु गतिविधियाँ और उपलब्धियों को एक वीडियो के माध्यम से बतलाया गया।
हाइकु दिवस क्यों मनाया जाता है तथा हाइकु कैसे लिखे जाएँ श्री कमलेश भट्ट कमल, गाजियाबाद और डॉ जगदीश व्योम, दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा। श्री सतीश राठी , इंदौर और श्री पवन जैन, लखनऊ के उद्बोधन में सहमति रहा
श्वेता माथुर, बॉस्टन... और स्वाति माथुर, कैलिफोर्निया वरिष्ठ हाइकुकार डॉ. सरस्वती माथुर जी की दोनों बिटिया ने उनके हाइकुओं का पाठ किया।
श्री सुरेश पाल वर्मा, दिल्ली कैलाश कल्ला, जोधपुर सुषमा खरे सिहोरा, जबलपुर, ऋतु कुशवाहा, इंदौर, रमेश कुमार सोनी, बसना उपेन्द्र प्रताप सिंह, कैलिफोर्निया, शेख शहज़ाद उस्मानी, शिवपुरी/मध्य प्रदेश, बबिता सिंह, हाजीपुर, सुषमा सिंह, जबलपुर, मनीष श्रीवास्तव, कैलिफोर्निया, शोनाली श्रीवास्तव, कैलिफोर्निया
मधु गोयल , अचला झा, पूनम मिश्रा, डॉ. संजय कुमार सराठे, के संग अनेकानेक हाइकुकार ने हाइकु का पाठ किया।
.
–धन्यवाद ज्ञापन और मंच संचालन लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव, कैलिफोर्निया से किया।
----
*द इंस्टीच्यूशन ऑफ इंजीनियर'स (इंडिया) भवन, पटना* *वरिष्ठ अतिथि* डॉ अनीता राकेश श्रीमती आशा प्रभात
डॉ. भावना शेखर श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी श्री गोरख प्रसाद मस्ताना *'पत्रिका लोकार्पण'* *'गद्य साहित्योत्सव'* अतिथियों से साहित्य सम्बन्धित प्रश्नोत्तर *समय : अपराह्न 2–5 बजे...* छोटी कहानी, लघुकथा, संस्मरण उपन्यास अंश, समीक्षा, आलेख का पाठ जो सदस्य *बिलकुल* गद्य नहीं लिखते हैं *उनकी* कविता का पाठ *मंच संचालन* मो. नसीम अख्तर और श्री मधुरेश नारायण डा० रब्बान अली प्रियंका श्रीवास्तव पूनम (कतरियार) डॉ. पूनम देवा सीमा रानी संजय कुमार सिंह सुधा पाण्डेय नूतन सिन्हा शाईस्ता अंजुम एकता कुमारी
अभिलाष दत्त
प्रभात कुमार धवन

अभिलाष दत्त सह सचिव
“विसंगतियाँ समाज की अंग होती हैं और संवेदनशील रचनाकार का गुण निश्चय ही संवेदनशीलता सृजन का आधार है, किंतु एक रचनाकार को यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि वह साहित्य के रूप में समाज का दर्पण जरूर प्रस्तुत करता है किंतु दर्पण प्रत्येक पक्ष को सदैव सीधा नहीं दिखलाता।” उक्त बातें प्रो. डॉ. अनीता राकेश ने साहित्यक संस्था के चतुर्थ वार्षिकोत्सव के आयोजन में उनसे पूछे गए प्रश्नों को जवाब देते हुए कहा।
कोरोना को ध्यान में रखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग और तमाम एहतियातन को ध्यान में रखते हुए आज के कार्यक्रम में डॉ. पूनम देवा द्वारा पूछे गए सवाल, “लेखक में इतनी संवेदनशीलता हैं कि विसंगतियों की वीभत्सता को ज्यों का त्यों परोस देना वे अपना दायित्व है समझते हैं… क्या निदान हेतु पाठक खुद तलाश करें”..? पर डॉ. अनीता राकेश ने बताया कि विसंगतियां समाज का अंग है किंतु उनका वीभत्स स्वरूप सर्वत्र प्रेय नहीं।
वहीं प्रियंका श्रीवास्तव जी द्वारा पूछे गए इसी सवाल पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भावना शेखर ने कहा कि ज्यादातर साहित्यकार यथार्थ दिखाने के बहाने समाज की विद्रूपता, विसंगतियों को दिखा रहे हैं पर सीखा कुछ नहीं रहे हैं। ऐसा कर के साहित्यकार अपना आधा कर्तव्य पूरा कर रहे हैं। कीचड़ दिखाना और कीचड़ साफ करना दोनों जरूरी है।
वहीं वरिष्ठ साहित्यकार गोरख प्रसाद मस्ताना ने सीमा रानी द्वारा पूछे गए सवाल का प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि लेखक न केवल साहित्यिक ज्ञान का परिचायक होता है, बल्कि संवेदनशीलता का भी परिचायक होता है। इसके बिना तो हर तरह का साहित्य अधूरा है।
अंत में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय भगवती प्रसाद दिवेदी जी ने डॉ. रब्बान अली के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सामाजिक विसंगतियां और विद्रूपताएं समकालीन जीवन की कड़वी सच्चाई है जिससे मुँह फेरना लेखकीय ईमानदारी नहीं कही जा सकती है। इसलिए इन विडंबनाओं के मार्मिक चित्र उकेरकर गहरी संवेदना जगाना लेखक का दायित्व है।
प्रश्नोत्तर सत्र के अंतिम में पूनम कतरियार ने अपना विशेष सवाल, “रचनाकार जिस भावभूमि से रचना का सृजन करता है,क्या अनुवादक उस भावभूमि तक पहुँच पाता है”? मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों के सामने रखा।
इसके प्रत्युत्तर में:-
●डॉ. भावना शेखर जी ने कहा कि रचनाकार की भावभूमि और अनुवादक की भावभूमि के संदर्भ में पूनम (कतरियार)जी के प्रश्न के जवाब में माना कि,मूल लेखक की रचना पाठकों तक पहुँचाने में अनुवादक की भूमिका एक पोस्टमैन की होती है।
●डॉ. अनिता राकेश जी ने माना किलिपि के अनुवाद के साथ भाव का अनुवाद नहीं होना चाहिए। भाव को ज्यों का त्यों रखना कठिन तो है,लेकिन होना यही चाहिए।
●डाॅ. भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने इस सवाल को जरूरी मानते हुए कहा कि अनुवाद करते है तो जब हम अनुवाद करते हैं तो दोनों भाषाओं का ज्ञान और विषय को लेकर पूरी संवेदना होनी चाहिए...जब तक भाषाओं का ज्ञान और विषय के प्रति संवेदना नहीं होगी,तब तक वह व्यक्ति वैसा अनुवाद नहीं कर पायेगा।
वहीं आज कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए संस्था के तत्कालीन सचिव रवि श्रीवास्तव ने सभी को लेख्य-मंजूषा के चतुर्थ वार्षिकोत्सव की बधाई देते हुए शुभकामनाएं दी। उसके बाद उन्होंने मंच संचालन की जिम्मेदारी कार्यकारी अध्यक्ष मो. नसीम अख़्तर और उनके सहयोगी उपाध्यक्ष मधुरेश नारायण को मंच संचालन के लिए आमंत्रित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथीयों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर के किया गया। उसके बाद सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए स्मृति चिन्ह दिया गया। उसके बाद संस्था लेख्य-मंजूषा की त्रैमासिक पत्रिका “साहित्यक स्पंदन” का लोकार्पण किया गया।
उसके बाद सदस्यों द्वारा गद्य रचनाओं का पाठ किया गया।
वहीं चतुर्थ वार्षिकोत्सव के साथ - साथ आज सोलहवें हाइकु दिवस पर पटना से बाहर के सदस्यों के लिए ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन लेख्य-मंजूषा की वर्चुअल गोष्ठी गूगल मिट पर किया गया। जिसमें अस्थानीय सदस्यों और कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने हिस्सा लिया।
धन्यवाद ज्ञापन कार्यकारी अध्यक्ष रंजना सिंह ने किया।
…………………………………………….
कोरोना के साथ जीना :- प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
अब आ गया हमें कोरोना के साथ जीना, ये जताते हुए लेख्य-मंजूषा के सदस्यों के द्वारा लेख्य-मंजूषा का चतुर्थ वार्षिकोत्सव व सोलहवें 'हाइकु दिवस' के अवसर पर साहित्योत्सव के रूप में द इंस्टीच्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) भवन में हर साल की तरह मनाया गया। जिसमें आदरणीया डॉ. अनिता राकेश , आदरणीया डॉ. भावना शेखर, और आदरणीया अलका वर्मा तथा आदरणीय डॉ. गोरख प्रसाद 'मस्ताना', आदरणीय भगवती प्रसाद 'द्विवेदी', लघुकथाकार श्री सिद्धेश्वर साहित्यकार मौजूद थे।
हर साल की तरह कहना उचित नहीं क्योंकि सदस्यों की संख्या काफी कम थी। बैठने में आपसी दूरी बनी रहे, बैठने की व्यवस्था में इसका पूरा ख्याल रखा गया। आने वाले सभी सदस्य मास्क और सैनिटाइजर के प्रयोग पर ध्यान रख रहे थे। सर्वप्रथम लेख्य-मंजूषा की त्रैमासिक पत्रिका 'साहित्यिक स्पंदन' के जुलाई-सितम्बर और अक्टूबर-दिसम्बर अंक के संयुक्तांक का लोकार्पण किया गया। इस कोरोना काल में भी लेख्य-मंजूषा परिवार ने अपने पत्रिका का संपादन, प्रकाशन बहुत ही सुंदर किया, जिसमें उन सभी सदस्यों की रचना को स्थान प्राप्त हुआ जिन्होंने इस कोरोना काल में अपनी साहित्यिक गति-विधि को विराम नहीं दिया था। आज के कार्यक्रम में प्रश्नोत्तर काल रखा गया था। सदस्य बारी बारी से साहित्यकारों से अलग-अलग प्रश्न पूछे और साहित्यकारों ने सभी प्रश्नों का सुन्दर जवाब देकर प्रश्नकर्ता के साथ-साथ अन्य सभी को संतुष्ट किया। प्रश्नोत्तर के बीच-बीच में उपस्थित सदस्यों के द्वारा स्वरचित रचना का पाठ किया गया। सदस्यों ने साहित्यकारों का स्वागत माल्यार्पण और मोमेंटो देकर किया। सभी सदस्यों को रचनापाठ के साथ ही प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। इस हाइकु दिवस पर कार्यकारी अध्यक्ष आदरणीय मो.नसीम अख्तर जी ने कुछ हाइकु को सुनाया। आदरणीय 'भगवती प्रसाद द्विवेदी' जी ने हाइकु विधा पर प्रकाश डाला। लेख्य-मंजूषा की सदस्या आदरणीया पूनम कतरियार जी ने आदरणीय साहित्यकारों से एक बहुत ही सुंदर प्रश्न किया - –"रचनाकार जिस भावभूमि से रचना का सृजन करता है, क्या अनुवादक उस भावभूमि तक पहुँच पाता है?" पूनम जी के इस प्रश्न का जवाब भावना शेखर जी ने अपने अनुभव के आधार पर दिया जब उन्होंने अनुवादक की भूमिका निभाई कन्नड़ कविता को हिन्दी में अनुवाद कर। उनके साथ ही आदरणीया अनिता राकेश जी ने भी इस प्रश्न पर प्रकाश डाला। दोनों साहित्यकारों के जवाब का सार एक ही था कि रचना के भाव को ध्यान में रखते हुए अनुवाद करना आवश्यक होता है तभी लेखक के साथ न्याय किया जा सकता है और ऐसा करना बहुत कठिन है। इस कठिन कार्य को करते वक्त अनुवादक स्वतः उसी भाव में डूब जाता है जो रचना में अंतर्निहित है अर्थात लेखक के भाव में। कार्यक्रम के अंत में इस वर्ष दिगवंत हुए सभी साहित्यकारों के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। तदोपरांत उपस्थित सभी व्यक्तियों की सामूहिक तस्वीर उतारी गई। इस प्रकार लेख्य-मंजूषा के सदस्यों ने कोरोना काल में सुरक्षित रह कर एक कार्यक्रम कर सभी को जागृत करने का सफल प्रयास किया। इस सफल प्रयास का श्रेय जाता है हमारी अध्यक्ष आदरणीया 'विभा रानी श्रीवास्तव' जी को जो वर्तमानकाल कैलिफोर्निया में हैं। शायद पहली बार लेख्य-मंजूषा के सदस्यों ने अपना वार्षिकोत्सव अपने अभिवावक आदरणीय 'डॉ. सतीश राज पुष्करणा' जी की अनुपस्थिति में पूर्ण किया। हालांकि परोक्ष रूप से उनका प्यार, आशीर्वाद और संरक्षण सदा मिलता रहा। उपर वाले से प्रार्थना है कि लेख्य-मंजूषा के सभी सदस्य इसी प्रकार मोती की तरह आपस में गूंथ कर माला बन अपनी ओर-छोर की दूरी को मिटा कर एकता की मिसाल बनाए रखेंगे। इति प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'

Saturday, August 8, 2020

अगस्त गद्य मासिक गोष्ठी

 दीप प्रज्ज्वलन के बाद अतिथियों का अभिनन्दन करते हुए स्वागत किया गया... अवसर था लेख्य-मंजूषा की मासिक गद्य-गोष्ठी का...। इस बार की गोष्ठी में सिर्फ अतिथियों का पाठ हुआ


पाठ की गई रचनाओं की पंक्तियाँ
"आबरू"–भगवती प्रसाद द्विवेदी, पटना

अतः उचित सज़ा यही है कि इन्हें गाँव में ही रहने दिया जाए, ताकि अन्य अबलाओं की आबरू पर कोई आँच न आने पाए ।
"चौखट"–डॉ. अनिता राकेश, पटना

अपनी जिम्मेदारियों के हाथ पकड़ घर के दरवाजे से प्रवेश करते समय सक्षम के कदम ठिठक जाते हैं |आंखें ऊपर की ओर देख रही हैं -आज उसे घर की चौखट बहुत ऊँची महसूस हो रही रही है |●
■–
"अग्नि परीक्षा"–डॉ. ध्रुव कुमार

  " जी तो चाहता था.. चप्पल से मुँह लाल कर दूँ..," लेकिन ऑफिस के लोगों ने उसे ऐसा करने से रोक लिया।●
■–
"माँ"–अनिल शूर आज़ाद

 थकान तथा कई दिनों से ठीक से न सो पाने के कारण उसकी अपनी आँखें भी बोझिल हो चली थीं।

     सहसा उठकर, उसने 'लाल थैला' उतारा और..अपने साथ भींचकर  सो गया।●
■–
"छोटी सी ज़िन्दगी"–संध्या गोयल सुगम्या
समय मिलता गया और हम छूट गए सिरों को फिर से उठाते चले गए। दुनिया में करने को इतना कुछ है कि ज़िन्दगी छोटी नज़र आती है।
■–
"डरे हुए लोग"–रविन्द्र सिंह यादव

समाज में तटस्थ लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। जब ख़ुद क़ानून के चंगुल में फँसते हैं तो कहते हैं- मुझे अपनी न्याय-व्यवस्था में पूरा भरोसा है। हक़ीक़त जानते सब हैं लेकिन लोग अपने तयशुदा ढर्रे पर ही चलना चाहते हैं।
■–रविन्द्र सिंह याद
"पिता की वेदना"–अनिल रश्मि

बेटा!  मेरी तबीयत ठीक नहीं है। दर्द भी है। दवा  की आवश्यकता है । जरूर ला देना । जी ला दूंगा । चार दिन बीत गए ...।
■–अनिल रश्मि, पटना
"बिदेशिया"–ओम सपरा

"उसे लगा कि बीस बरस से ज्यादा उस शहर में रहकर भी, वह उसके लिए अपरिचित है, और वह अभी भी सिर्फ एक प्रवासी है, वह सचमुच बीदेशिया है।"●
■–ओम सपरा, दिल्ली
"क़ायदा मतलब का"–

"बेटा, लोकलाज अर कैदे का ख्याल रखना पड़ै है। उस टैम जो बात सही थी मनै वही कही थी।",
माँ  ने समझाने  का प्रयास किया। है।"●
■–सतविन्द्र कुमार राणा,

"गेटप्रेम"–शेख़ शहज़ाद उस्मानी, शिवपुरी/मध्यप्रदेश

आरंभिक पंक्ति -

पहली दिल्ली यात्रा के दौरान गंतव्य की ओर जाते समय टैक्सी *इण्डिया गेट* के नज़दीक़ पहुँची ही थी कि.....

अंतिम पंक्ति -

.... गेट से ही प्रेम बँटने लगता है यहाँ!" गुरुद्वारे पहुँचने पर उसने कहा।

अंतिम पंक्ति -

.... गेट से ही प्रेम बँटने लगता है यहाँ!" गुरुद्वारे पहुँचने पर उसने कहा।

        
   

लेख्य-मंजूषा के सदस्यों के लिए हर्ष के साथ वरिष्ठ साहित्यकारों से सीखने का सुनहला अवसर प्राप्त हुआ...। सभी अतिथि साहित्यकारों का हार्दिक आभार, धन्यवाद ज्ञापन और मंच-संचालन लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने किया...