Sunday, June 21, 2020

पिता-दिवस के अवसर पर लेख्य-मंजूषा का त्रैमासिक कार्यक्रम

साहित्यिक स्पंदन पत्रिका (अप्रैल-जून 2020) का लोकार्पण और गद्य पाठ वर्चुअल गोष्ठी में सम्पन्न

प्रस्तुतकर्ता :- अभिलाष दत्ता (उप-सचिव)


कार्यक्रम के शुरुआत होने के बाद संस्था की पत्रिका “साहित्यक-स्पंदन" (अप्रैल-जून 2020) का लोकार्पण हुआ। इस बार की पत्रिका काव्य कोष के संचालक राहुल शिवाय जी के देखरेख में दिल्ली में प्रकाशित हुई है। पत्रिका पर रौशनी डालते हुए राहुल शिवाय जी ने कहा कि “पत्रिका बहुत खूबसूरत बन पड़ी है। पितृ दिवस पर अत्यधिक रचनाओं के साथ-साथ वर्तमान में जो घटनाएं सब हुई है उन सब पर कुछ-न-कुछ रचना पत्रिका में छपी है"



पितृ दिवस के शुभ अवसर पर संस्था लेख्य-मंजूषा ने पिता पर आधारित लघुकथा पर “अंतरराष्ट्रीय लघुकथा समीक्षा 2020" का आयोजन किया गया था। जिसमें 62 प्रतिभागियों द्वारा लिखित समीक्षा शामिल हुई। इन तमाम लिखित समीक्षाओं के समीक्षक अल्मोड़ा उत्तराखंड से वरिष्ठ साहित्यकार खेमकरण सोनम जी थे। खेमकरण सोनम जी ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि समीक्षा के लिया अच्छी लघुकथा का चुनाव कर लेना आधी जंग जीत लेना जैसा होता है।
इन 62 समीक्षाओं में प्रथम स्थान पर अर्चना रॉय जी रही, उन्होंने लघुकथाकार रामेश्वरम हिमांशु कम्बोज जी की रचना “नवजन्मा" पर समीक्षा लेखन की थी। द्वितीय स्थान पर संस्था की पूनम कतरियार जी रही। पुनम कतरियार जी ने रामेश्वरम हिमांशु कम्बोज जी की लघुकथा “ऊँचाई" पर समीक्षा लिखी थी। तृतीय स्थान पर संस्था की मीनू झा जी रही, उन्होंने लघुकथाकार कुमार गौरव जी की रचना “निष्ठर" पर समीक्षा लेखन की थी। वहीं तृतीय स्थान मीनू झा के संग राधेश्याम भारतीय जी को भी प्राप्त हुआ वह लघुकथाकार माधव नागदा जी लघुकथा “पुराना दरवाजा" पर अपनी समीक्षा प्रस्तुत किये थे।
इन 62 समीक्षा की पुस्तक जल्द ही लेख्य-मंजूषा संस्था के तरफ से प्रकाशित होने वाली है।

फ़िल्म मैं ऐसा ही हूँ की गीत
चँदा ने पूछा तारों
तारों ने पूछा हजारों से
गाती माया शनॉय श्रीवास्तव


“पिता पत्थर है, जरा हटकर रहे,
वह सुबह-शाम भटकते रहे,
वह हमेशा-हमेशा खटकते रहे,
अम्मा से अलग भटकते रहे।
देखा एक दिन तो पाया,
वह अपने राम-राम को
जन्म भटकते रहे।।”
उक्त पंक्तियाँ दार्शनिक कवि आदरणीय “राश दादा रास" ने साहित्यक संस्था “लेख्य-मंजूषा" के ऑनलाइन त्रैमासिक कार्यक्रम में कहा। लेख्य-मंजूषा के इतिहास में यह पहला मौका था जब त्रैमासिक कार्यक्रम ऑनलाइन एप्प ज़ूम व गूगल मीट के जरिये सम्पन्न हुई।
पितृ दिवस पर आयोजित गद्य त्रैमासिक कार्यक्रम पूर्णत पिता को समर्पित रही। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में कैलिफ़ोर्निया अमेरिका से नीलू गुप्ता जी ने पिता के बारे में कहा कि पिता नारियल की तरह ऊपर से कठोर और अंदर से नर्म होते हैं। उन्होंने अपनी रचना का पाठ करते हुए कहा कि “माँ-पिता एक समान, मैं किसे करूँ प्रथम प्रणाम? मैं दोनों को करूँ एक साथ प्रणाम
कार्यक्रम में उपस्थित पटना के वरिष्ठ कवि घनश्याम जी ने कहा कि ईश्वर पर लिखना सरल है, किंतु माँ-पिता पर कुछ भी लिखना अत्यंत कठिन है। माँ-पिता का दर्जा ईश्वर से भी ऊपर है।
कार्यक्रम में उपस्थित विदुषी साहित्यकार आदरणीय डॉ. अनीता राकेश ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि “कठोर आवरण के भीतर शुद्ध सात्विक निर्मल जल , श्वेत दल युक्त पिता के इस स्वरूप का दिग्दर्शन जब  होता है तो चौंकाने वाला ही होता है | यह मौन रह कर गरल पान करने वाला  वह नीलकंठी शिव है जो सदैव पूजित नहीं होता |धीरता की पाषाण प्रतिमा बन काल के प्रहार का सामना करता पिता का व्यक्तित्व समस्त व्रणों का हलाहल आत्मसात् करता जाता है
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आज के कार्यक्रम को दो सत्रों में बाँटा गया था। प्रथम सत्र का आयोजन ज़ूम एप्प और द्वितीय सत्र का आयोजन गूगल मीट एप्प पर किया गया।
प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव जी ने अमेरिका से लाइव होते हुए पितृ दिवस पर कहा कि “माँ होना जिस दिन सुनिश्चित हो जाता है उस दिन से पिता होना भी तय होता है.. । आज भी समाज में पुरुष की जिम्मेदारी होती है घर, पत्नी व बच्चों का हर तरह से ख्याल रखना। पति के रूप में थोड़ा कमजोर भी हो सकता है परन्तु पिता के रूप में सशक्त इंसान होता है। पिता के प्रति हर बच्चा ऋणी होता है। आभार प्रकट करने के लिए सम्मान देने के लिए एक दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता है। हम प्रति पल उनके प्रति अपने दायित्व को निभाने का प्रयत्न करते हुए उनका सम्मान करते है इसका विश्वास दिलाने की चेष्टा करते हैं"
आज के कार्यक्रम का संचालन पटना के मशहूर शायर मो. नसीम अख्तर जी ने किया।
धन्यवाद ज्ञापन युवा उपन्यासकार अभिलाष दत्ता ने किया।
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कार्यक्रम में उपस्थित सुधीजनों के रचना के दो-दो पंक्ति :-
भगवती प्रसाद द्विवेदी : पिता:
संतान की बरगदी छाँव पिता, जो चिलचिलाती दोपहरी में लू के थपेड़े झेलता जीवन-संग्राम में 
मुस्तैद सैनिक की भूमिका अदा करता है, पर संतान की हर मुमकिन सुख-सुविधा की शीतल छाँव के लिए अपनी जान की बाजी लगा देता है ।संतान को उसके न रहने पर उसकी 
अहमियत का पता चलता है ।हम पिता के जीते जी उनका सम्मान करना कब सीखेंगे?
सतविन्द्र कुमार राणा : नजदीक की दूरी
पिताजी आगे बोले,"तू सँभाल अपने पोते-पोतियों को और मैं सँभालूँ भैंसों को।"
दोनों के होठों पर मुस्कान और आँखों में  विवशता झलक रही थी।
पिता जी चले गए। माँ बड़बड़ा रही थी,"बड़े परिवार में बड़े,पास रहते हैं, पर एक साथ नहीं।"
मंजू मिश्रा: पिता
सघन वट वृक्ष सी छाया बन 
सिर पर तने रहते हैं पिता 
वक्त की आँधियों के सामने 
ढाल बन कर अडिग खड़े रहते हैं पिता..
सुषमा खरे : ''पिताजी हमारे लिए भगवान है''
 पिता हर बच्चे के लिए इस धरती पर ईश्वर का रूप होते हैं।
हर पिता अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए दिन-रात मेहनत करता है।
बच्चों की हर छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए आवश्यकता से अधिक चिंतित रहता है।
श्रुत कीर्ति अग्रवाल : नई पीढ़ी की नई सोंच 
स्नेहा के पापा की तबियत खराब होने की खबर न आती
तो वो येन केन प्रकारेण  अभी कुछ दिन और यहीं रुके रहने का
जतन कर ही लेतीं। दो महीने की इस नन्ही सी जान को
छोड़ कर जाने की उनकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी।
मधुरेश नारायण : "मेरे बाबूजी"
ऐसा क्यूँ होता है,जब लोग नहीं रहते हैं?
उनकी कमी ,उनके प्यार के लिये तरसते हैं।
नूतन सिन्हा : जब मैं छोटी थी
मैं करीब 12 साल की थी तो मेरी हालत अब तब में थी
बहुत बीमार थी तो डॉकटर स्वामी नन्दन से मेरा इलाज चल रहा था
उस वक्त पापा (पिता जी )मेरे सिरहाने पास बैठकर
हर वक्त दुर्गा चालिसा का पाठ किया करते थे ।
डॉ. पूनम देवा : वक्त
हाँ, मैं आ रहा हूँ बेटा ! अब मैं अपने आख़िरी वक्त
अपनी पोती और तुम्हारे साथ हीं बिताऊंगा।
पूनम (कतरियार) : पिता की ममता
" जब पिता में माँ  की ममता बस जाती है तो 
ईश्वर का स्वरूप साकार हो जाता है।
सीमा रानी : पुरानी 
आज सुबह आँख खुली तो घर की शानदार सजावट देखकर मै हैरान रह गयी।
कोई आने वाला है क्या, पापा?
पापा एक हल्की मुस्कराहट के साथ आगे बढ़ गये।
माँ के जाने के बाद इस घर का सन्नाटा काटने को दौड़ता था।
कुमार गौरव : फटा नोट
"जिम्मेदारी.."
" हाँ$$ बताता तो कुछ कहीं से बरतन भांडे बेचकर फार्म तो भरवा ही देते ।
इनको लगता है लोग किताबें पढने से ही आदमी बनते हैं।"
राजेन्द्र पुरोहित : मैं हूँ न बेटा
पिताजी को गये आज एक महीना हो गया था। असीम का रो-रो कर बुरा हाल था।
मित्र व रिश्तेदार समझा-समझा कर हार गये, लेकिन असीम माने तब न।
और यों देखिये, तो रोने की वजह भी वाजिब थी।
संगीता गोविल : मुखिया
अजय का रो-रो कर बुरा हाल था । इतना तो वह अपने पिता की मृत्यु पर भी नहीं रोया था ।
उस घर का वह मामूली-सा नौकर था। लेकिन बचपन से
अजय व घर के अन्य बच्चे पिता से ज्यादा उसकी बात मानते थे।
रविन्द्र कुमार:पिता
"अपनी रोजी को कोई लज्जित होता हुआ नहीं देखता, 
पैर के अँगूठे से इशारा करके बताना मुझे अच्छा नहीं लगा।"
"सॉरी अंकल।"कहता हुआ समीर साइकिल के पैडल पर पाँव रखता है
और गंभीर होकर स्वाभिमान-अभिमान पर चिंतन करता हुआ कॉलेज पहुँच जाता है|"
रंजना सिंह : पिता दिवस
    पिता परिवार का आदर्श होता है।बच्चे अपने पिता का
सबसे ज्यादा अनुसरण करते हैं। पिता के आशीर्वाद के
छाया में पूरा परिवार पुष्पित एवं फलित होता है।
अमृता सिन्हा : मज़बूत कंधे
क्या पापा? कितना समझाया था आपको?
फ़िर भी आपने केस वापस नहीं लिया अब तक?
दीदी के जाने का दुःख हम सभी को है।
पर उसकी बेटी के पालन-पोषण का भार
उसके ससुराल वालों पर ही रहने दीजिए ना।"
कवि घनश्याम : "पिता होना"
माँ अपनी संतानों के लिए होती हैं आधारशिला
जबकि पिता होते हैं अभियंता । जो न केवल तैयार करते हैं
उनके भविष्य की रूप रेखा बल्कि उस पर सतत करते रहते हैं।
निर्माण कार्य मजबूत गारे से ईंट दर ईंट और माताएं उसपर करती रहती हैं 
ममता के जल का छिड़काव ताकि उस संरचना का क्षरण नहीं हो चिरकाल तक.
रवि श्रीवास्तव : पिता का प्यार
"हूंह! पापा हमेशा ऐसा ही करते हैं।
देखो मम्मी कैसा घटिया-सस्ता मोबाइल लाए हैं मेरे लिए।
इतना भी नहीं सोचा कि इतने बड़े काॅलेज में पढ़ने जा रहा हूँ ।
क्या इज्जत रहेगी सबके बीच।"
उपेंद्र प्रताप सिंह : सपनों का मोल
महत्त्वकांक्षी बेटे के सपनों बारे में पिता का
सबसे बड़ा डर सच हुआ तो पिता कैसे टूट गया

अगला त्रैमासिक आयोजन सितम्बर में होगा
और त्रैमासिक पत्रिका के लिए
रचना भेजने की अंतिम तिथि 30 जून 2020


2 comments:

  1. समस्त साहित्यिक गतिविधियों को समाहित करता हुआ पूर्णत पितृमय उम्दा ब्लॉग

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  2. अनेकों जानकारियां प्राप्त हुई। साथ ही भाग लेने वाले साहित्यकारों की रचनाओं का आनंद भी प्राप्त हुआ।
    संगीता गोविल

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