Saturday, August 8, 2020

अगस्त गद्य मासिक गोष्ठी

 दीप प्रज्ज्वलन के बाद अतिथियों का अभिनन्दन करते हुए स्वागत किया गया... अवसर था लेख्य-मंजूषा की मासिक गद्य-गोष्ठी का...। इस बार की गोष्ठी में सिर्फ अतिथियों का पाठ हुआ


पाठ की गई रचनाओं की पंक्तियाँ
"आबरू"–भगवती प्रसाद द्विवेदी, पटना

अतः उचित सज़ा यही है कि इन्हें गाँव में ही रहने दिया जाए, ताकि अन्य अबलाओं की आबरू पर कोई आँच न आने पाए ।
"चौखट"–डॉ. अनिता राकेश, पटना

अपनी जिम्मेदारियों के हाथ पकड़ घर के दरवाजे से प्रवेश करते समय सक्षम के कदम ठिठक जाते हैं |आंखें ऊपर की ओर देख रही हैं -आज उसे घर की चौखट बहुत ऊँची महसूस हो रही रही है |●
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"अग्नि परीक्षा"–डॉ. ध्रुव कुमार

  " जी तो चाहता था.. चप्पल से मुँह लाल कर दूँ..," लेकिन ऑफिस के लोगों ने उसे ऐसा करने से रोक लिया।●
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"माँ"–अनिल शूर आज़ाद

 थकान तथा कई दिनों से ठीक से न सो पाने के कारण उसकी अपनी आँखें भी बोझिल हो चली थीं।

     सहसा उठकर, उसने 'लाल थैला' उतारा और..अपने साथ भींचकर  सो गया।●
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"छोटी सी ज़िन्दगी"–संध्या गोयल सुगम्या
समय मिलता गया और हम छूट गए सिरों को फिर से उठाते चले गए। दुनिया में करने को इतना कुछ है कि ज़िन्दगी छोटी नज़र आती है।
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"डरे हुए लोग"–रविन्द्र सिंह यादव

समाज में तटस्थ लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। जब ख़ुद क़ानून के चंगुल में फँसते हैं तो कहते हैं- मुझे अपनी न्याय-व्यवस्था में पूरा भरोसा है। हक़ीक़त जानते सब हैं लेकिन लोग अपने तयशुदा ढर्रे पर ही चलना चाहते हैं।
■–रविन्द्र सिंह याद
"पिता की वेदना"–अनिल रश्मि

बेटा!  मेरी तबीयत ठीक नहीं है। दर्द भी है। दवा  की आवश्यकता है । जरूर ला देना । जी ला दूंगा । चार दिन बीत गए ...।
■–अनिल रश्मि, पटना
"बिदेशिया"–ओम सपरा

"उसे लगा कि बीस बरस से ज्यादा उस शहर में रहकर भी, वह उसके लिए अपरिचित है, और वह अभी भी सिर्फ एक प्रवासी है, वह सचमुच बीदेशिया है।"●
■–ओम सपरा, दिल्ली
"क़ायदा मतलब का"–

"बेटा, लोकलाज अर कैदे का ख्याल रखना पड़ै है। उस टैम जो बात सही थी मनै वही कही थी।",
माँ  ने समझाने  का प्रयास किया। है।"●
■–सतविन्द्र कुमार राणा,

"गेटप्रेम"–शेख़ शहज़ाद उस्मानी, शिवपुरी/मध्यप्रदेश

आरंभिक पंक्ति -

पहली दिल्ली यात्रा के दौरान गंतव्य की ओर जाते समय टैक्सी *इण्डिया गेट* के नज़दीक़ पहुँची ही थी कि.....

अंतिम पंक्ति -

.... गेट से ही प्रेम बँटने लगता है यहाँ!" गुरुद्वारे पहुँचने पर उसने कहा।

अंतिम पंक्ति -

.... गेट से ही प्रेम बँटने लगता है यहाँ!" गुरुद्वारे पहुँचने पर उसने कहा।

        
   

लेख्य-मंजूषा के सदस्यों के लिए हर्ष के साथ वरिष्ठ साहित्यकारों से सीखने का सुनहला अवसर प्राप्त हुआ...। सभी अतिथि साहित्यकारों का हार्दिक आभार, धन्यवाद ज्ञापन और मंच-संचालन लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने किया...

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